Monday, September 23, 2024

کویتا ( پال جالندھری )

 










ਲਹਿੰਦੇ ਚੜਦੇ  ਆਪਣੇ ਪੰਜਾਬ  ਦੀ    ਗੱਲ   ਐ।

ਸਤਿਲੁਜ ਬਿਆਸ , ਰਾਵੀ  ,ਝਨਾਬ ਦੀ ਗੱਲ  ਐ।

لہندے   چڑھدے   اپنے   پنجاب   دی گل اے

ستلج    بیاس    راوی    چناب   دی  گل اے

ਗੁਰਮੁਖੀ,   ਸ਼ਾਹਮੁਖੀ    ਦੇ   ਬੂਟੇ ਤੇ    ਖਿਲੇ ਨੇ,

ਭਾਈਆਂ    ਨੂੰ   ਵਿਛੜੇ  ਭਾਈ ਆਣ   ਮਿਲੇ  ਨੇ,

گُرمُکھی  شاہ مُکھی  دے  بوٹے تے کِھلے نیں

بھائیاں    نوں   وچھڑے   بھائی  آن ملے نیں

ਸੋਹਣੇ   ਫੁੱਲਾਂ   ਚੋਂ ਫੁੱਲ।   ਗੁਲਾਬ  ਦੀ ਗੱਲ ਐ।

ਲਹਿੰਦੇ   ਚੜ੍ਹਦੇ  ਆਪਣੇ  ਪੰਜਾਬ।  ਦੀ ਗੱਲ ਐ।

سوہنے   پُھلاں  چوں  پُھل  گلاب دی گل اے

لہندے   چڑھدے   اپنے   پنجاب   دی گل اے

ਗੁਰੂਆਂ,  ਪੀਰਾਂ    ਦਰਵੇਸ਼ਾਂ।  ਦੀ    ਲਿੱਪੀ    ਜੋ

ਸ਼ਬਦਾਂ  ਦੇ ਨਾਲ     ਮਿਲਾ    ਕੇ      ਲਿੱਖੀ    ਜੋ

گُرواں   پیراں     درویشاں    دی    لپی   جو

شبداں    دے     نال    ملا    کے   لکھی   جو

ਉਹ  ਰਚਨਾਵਾਂ  ਦੇ ਸੁਮੇਲ ਅਲਾਪ  ਦੀ ਗੱਲ ਐ।

ਲਹਿੰਦੇ  ਚੜ੍ਹਦੇ  ਆਪਣੇ  ਪੰਜਾਬ   ਦੀ  ਗੱਲ ਐ।

اوہ   رچناواں  دے  سُمیل  الاپ   دی گل اے

لہندے   چڑھدے   اپنے   پنجاب  دی  گل اے

ਪਾਲ ਜਲੰਧਰੀ  ਕੱਠੇਇਆਂ ਦੇ ਨਾਲ   ਜੋ   ਬੀਤੀ,

ਮੁਹੱਬਤਾਂ ਦੀ  ਗੱਲ ਸੱਜਣਾ ਦੇ ਨਾਲ  ਪਾਈ ਪ੍ਰੀਤੀ

پال جلندھری  کٹھیاں  دے   نال   جو   بیتی

محبتاں  دی گل سجناں  دے نال پائی پریتی

ਮੇਰੇ ਲਹਿੰਦੇ  ਚੜਦੇ   ਰਿਸ਼ਤੇ ਸਾਂਝ   ਦੀ ਗੱਲ ਐ।

ਲਹਿੰਦੇ   ਚੜ੍ਹਦੇ ਆਪਣੇ ਪੰਜਾਬ  ਦੀ  ਗੱਲ    ਐ।

میرےلہندےچڑھدےرشتےسانجھ دی گل اے

لہندے   چڑھدے   اپنے   پنجاب   دی گل اے


ਸ਼ਾਇਰ ਪਾਲ ਜਲੰਧਰੀ 

شاعر پال جلندھری

گرومکھی مترجم اشتیاق انصاری

ਗੁਰਮੁਖੀ ਮਤਰਜਮ ਇਸ਼ਤਿਆਕ ਅਨਸਾਰੀ

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